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अहमदाबादकुछ ही क्षण पहलेलेखक: अर्पित दर्जी
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- नीरव परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वे टेलरिंग का काम भी करते हैं
- नीरव ने अपनी रिसर्च के लिए इन तस्वीरों में से PPGUpj नाम के एक उल्का पिंड को चुना
अहमदाबाद के एमजी साइंस कॉलेज में जियोलॉजी के सेकंड ईयर के स्टूडेंट नीरव ने एस्टोरॉइड खोज निकाला है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा अब इसी उल्का पर रिसर्च करेगी। यहां, नीरव से जुड़ी खास बात तो यह है कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वे टेलरिंग का काम भी करते हैं। वहीं, उन्होंने जिस लैपटॉप की मदद से एस्टोरॉइड की पहचान की है, वह लैपटॉप उन्हें एक पड़ोसी ने दिया था।

प्रपल्जन लेबोरेटरी हर 6 महीने में स्पेस की कई तस्वीरें जारी करती है और उसमें दिखाई देने वाले उल्का पिंड की पहचान करने का चैलेंज देती है।
दो महीनों में पूरा किया टास्क
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की सहायक एजेंसी प्रपल्जन लेबोरेटरी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में नई-नई रिसर्च के लिए दुनिया भर के साइंस के स्टूडेंट्स को मौका देती है। प्रपल्जन लेबोरेटरी हर 6 महीने में स्पेस की कई तस्वीरें जारी करती है और उसमें दिखाई देने वाले उल्का पिंड की पहचान करने का चैलेंज देती है। स्टूडेंट्स को इन्हीं तस्वीरों के आधार पर उल्का पिंड का आकार, उसकी बनावट और स्पेस में उसकी जगह आदि की जानकारियां जुटानी होती हैं।
इसके लिए स्टूडेंट्स को 6 महीनों का समय दिया जाता है। वहीं, नीरव ने यह टास्क सिर्फ दो महीनों में ही पूरा कर दिया। उल्का धरती के लिए नुकसानदायक होते हैं। इसी के चलते नासा इन पर लगातार रिसर्च करती रहती है। वहीं, इस रिसर्च में सफल होने वाले स्टूडेंट्स को नासा की ओर से एक सर्टिफिकेट दिया जाता है।

परिवार की आर्थिक मदद के लिए टेलर का काम भी करते हैं।
PPGUpj नाम के एक उल्का को चुना
– नासा द्वारा उपलब्ध कराई गईं 200 से अधिक तस्वीरों का बारीकी से एनालिसिस किया।
– अज्ञात उल्कापिंडों को सांकेतिक नाम दिए जाते हैं। नीरव ने अपनी रिसर्च के लिए इन तस्वीरों में से PPGUpj नाम के एक उल्का पिंड को चुना।
– लगातार दो महीनों तक डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग सॉफ्टवेयर की मदद से इसका एनालिसिस किया और उसका एक चार्ट तैयार किया।
– इस उल्का पिंड के बारे में नीरव ने नासा को जो जानकारी मुहैया करवाईं, उसे नासा ने एक्सेप्ट किया। इसके बदले में नासा द्वारा नीरव को एक सर्टिफिकेट भी दिया गया है।
7 साल की छोटी उम्र से ही संभालने लगे थे परिवार की जिम्मेदारियां
नीरव ने अपनी रिसर्च से यह बात साबित कर दिखाई है कि लगन और टैलेंट हो तो सुविधाएं-संसाधन मायने नहीं रखते। जब नीरव मात्र 7 साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था। बहुत छोटी सी उम्र से ही उन्होंने मां और छोटी बहन की देखभाल की जिम्मेदारी संभाल ली थी। स्कूली पढ़ाई के अलावा भी वे छोटे-मोटे काम करते हुए परिवार की आर्थिक मदद करने लगे थे। वहीं, कॉलेज में एंट्री के बाद एक निजी कंपनी में डेटा एंट्री ऑपरेटर के रूप में भी काम किया। इसके अलावा वे टेलरिंग भी करते हैं।

अपनी कई अनूठी रिसर्च के लिए इसरो से भी 20 सर्टिफिकेट्स मिल चुके हैं।
नासा के अलावा अब तक इसरो से मिल चुके हैं 20 सर्टिफिकेट्स
साइंस में इंटरेस्ट होने के चलते उन्होंने जियोलॉजी सब्जेक्ट चुना। हालांकि, पैसों की कमी के चलते वे रिसर्च के लिए महंगे उपकरण नहीं खरीद सकते थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। यह रिसर्च भी उन्होंने एक पड़ोसी द्वारा दिए गए लैपटॉप की मदद से की है। नासा के अलावा उन्हें अब तक अपनी कई अनूठी रिसर्च के लिए इसरो से भी 20 सर्टिफिकेट्स मिल चुके हैं।
इस तरह आप भी हो सकते हैं इस रिसर्च में शामिल
नासा द्वारा आयोजित कराए जाने वाली इस रिसर्च का हिस्सा दुनिया का कोई भी स्टूडेंट्स हो सकता है। आइए, हम आपको इसकी पूरी प्रोसेस बताते हैं।
– नासा की जेट प्रपल्जन लैब की वेबसाइट www.jpl.nasa.gov/edu पर जाकर मार्स मिशन को क्लिक करना होगा।
– नासा की रिपोर्ट के अनुसार, इस वेबसाइट के माध्यम मे दुनिया भर के 4,60,712 स्टूडेंट्स रिसर्च कर रहे हैं।
– रिसर्च के लिए जरूरी डेटा और अन्य जानकारियों नासा द्वारा ही उपलब्ध कराई जाती हैं। इसके अलावा यहां अक्सर सवाल-जवाब के सेशंस भी होते रहते हैं।
– आगामी 18 फरवरी से मार्स मिशन के अंतर्गत फिर से एक नई विंडो खुलने जा रही है। साइंस में इंटरेस्ट रखने वाले स्टूडेंट्स इसमें पार्टिसिपेट कर सकते हैं।