सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह।
– फोटो : amar ujala
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कौन कितना कामयाब होगा और किसकी चाल सियासी सफलता दिलाएगी, ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन, इन बयानों ने यह साफ कर दिया है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अयोध्या राजनीतिज्ञों को अब भी वोट दिलाऊ मुद्दा नजर आता है। उन्हें इसके सहारे हिंदू व मुसलमानों का ध्रुवीकरण कराना ज्यादा आसान नजर आता है।
हालांकि, अखिलेश का चंदाजीवी वाला बयान प्रधानमंत्री के किसानों के मुद्दे पर आंदोलनजीवी वाले बयान के जवाब में दिया गया है, लेकिन इसके पीछे की मंशा साफ नजर आ रही है। कोई राजनेता न तो अकारण कुछ बोलता है और न करता है। उसके हर शब्द और कदम के पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक मकसद जरूर छिपा होता है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि यह बयान अखिलेश के मुंह से यूं ही निकल गया। सपा मुखिया ने यह बयान देकर एक तरह से अपने वोट बैंक के समीकरण को साधने की कोशिश की है।
बसपा की राजनीति में सक्रियता से मुसलमानों का कुछ वोट सपा से छिटका जरूर है, लेकिन ज्यादातर का समर्थन इसी पार्टी के साथ ही रहा। सपा मुखिया जानते थे कि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान पर उनकी तरफ से साधा गया निशाना उन्हें हिंदू संगठनों तथा भाजपा नेताओं के निशाने पर लाएगा। फिर भी उन्होंने बयान दिया।
प्रो. द्विवेदी की बात सही भी लगती है। अखिलेश को पता था कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा, संतों और हिंदू संगठनों की तरफ से उन पर होने वाले हमले मुसलमानों के बीच उनकी राजनीतिक पकड़ व पहुंच को मजबूत ही बनाएंगे। इसीलिए शायद उन्होंने चंदाजीवी शब्द का इस्तेमाल कर भाजपा पर निशाना साधा।
भाजपा नेताओं, संतों-महात्माओं और विश्व हिंदू परिषद सहित अन्य कुछ संगठनों के नेताओं ने उन्हें बाबरीजीवी बताते हुए उन पर राजनीतिक हमला बोलकर अखिलेश के मकसद को एक तरह से पूरा कर दिया है।
कौन कितना कामयाब होगा और किसकी चाल सियासी सफलता दिलाएगी, ये तो भविष्य बताएगा। लेकिन, इन बयानों ने यह साफ कर दिया है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बावजूद अयोध्या राजनीतिज्ञों को अब भी वोट दिलाऊ मुद्दा नजर आता है। उन्हें इसके सहारे हिंदू व मुसलमानों का ध्रुवीकरण कराना ज्यादा आसान नजर आता है।
हालांकि, अखिलेश का चंदाजीवी वाला बयान प्रधानमंत्री के किसानों के मुद्दे पर आंदोलनजीवी वाले बयान के जवाब में दिया गया है, लेकिन इसके पीछे की मंशा साफ नजर आ रही है। कोई राजनेता न तो अकारण कुछ बोलता है और न करता है। उसके हर शब्द और कदम के पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक मकसद जरूर छिपा होता है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि यह बयान अखिलेश के मुंह से यूं ही निकल गया। सपा मुखिया ने यह बयान देकर एक तरह से अपने वोट बैंक के समीकरण को साधने की कोशिश की है।
वोट बैंक संभालने की कवायद
बसपा की राजनीति में सक्रियता से मुसलमानों का कुछ वोट सपा से छिटका जरूर है, लेकिन ज्यादातर का समर्थन इसी पार्टी के साथ ही रहा। सपा मुखिया जानते थे कि मंदिर निर्माण के लिए निधि समर्पण अभियान पर उनकी तरफ से साधा गया निशाना उन्हें हिंदू संगठनों तथा भाजपा नेताओं के निशाने पर लाएगा। फिर भी उन्होंने बयान दिया।
अपने-अपने मकसद
प्रो. द्विवेदी की बात सही भी लगती है। अखिलेश को पता था कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा, संतों और हिंदू संगठनों की तरफ से उन पर होने वाले हमले मुसलमानों के बीच उनकी राजनीतिक पकड़ व पहुंच को मजबूत ही बनाएंगे। इसीलिए शायद उन्होंने चंदाजीवी शब्द का इस्तेमाल कर भाजपा पर निशाना साधा।
भाजपा नेताओं, संतों-महात्माओं और विश्व हिंदू परिषद सहित अन्य कुछ संगठनों के नेताओं ने उन्हें बाबरीजीवी बताते हुए उन पर राजनीतिक हमला बोलकर अखिलेश के मकसद को एक तरह से पूरा कर दिया है।