प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
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वर्ष 2017 में उक्त फर्जीवाड़े की शिकायत व जांच के लिए पीआईएल दाखिल की गई थी। इसमें अदालत ने जांच के आदेश दिए थे। वहीं, प्रयागराज के कैंट थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसे ही सीबीआई ने अपने यहां एफआईआर दर्ज करने का आधार बनाया है। जो केस दर्ज किया है, उसके मुताबिक संस्था में आरबी लाल की नियुक्ति, अनधिकृत कोर्स चलाए जाने, परिसर में यीशु दरबार आयोजित किए जाने संबंधी मुद्दों पर कई याचिकाएं दाखिल की गईं।
इनमें कोई पैरवी नहीं की गई और सभी खारिज हो गईं। जांच में पता चला कि सभी याचिकाएं समान थीं, सिर्फ याची व गवाह के नाम बदले हुए थे। वहीं, याची व गवाह के नाम व पते भी फर्जी निकले। पर, जांच में यह पता चला कि सभी याचिकाएं अधिवक्ता गुलाब चंद्र सिंह ने दाखिल की थीं। उसने पूछताछ में बताया कि ये याचिकाएं वकील बीएन शर्मा व वीके सविता के कहने पर दाखिल की गई थी। हालांकि जांच में पता चला कि इन दोनों की मौत हो चुकी है। उसने यह भी बयान दिया था कि याचिकाएं इन्हीं दोनों वकीलों के यहां टाईप की गई थीं, लेकिन यह तथ्य भी गलत पाया गया।
जब संस्था के कुलपति आरबी लाल और संस्था के दो अधिवक्ताओं जे नागर व अमित नेगी से पूछताछ की तो वे संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। जांच में पता चला कि इन याचिकाओं के लिए वकीलों को दी जाने वाली राशि का चेक वकील नागर को सौंपा जाता था। सीबीआई अब यह पता लगा रही है कि इन फर्जी याचिकाओं को दाखिल कराने के पीछे आरोपियों की क्या मंशा थी। याचिकाओं के एवज में हुए भुगतान में किस-किस की भागीदारी थी।
सीबीआई ने इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के कुलपति आरबी लाल व तीन वकीलों गुलाब चंद्र सिंह, जे नागर व अमित नेगी के खिलाफ बृहस्पतिवार को एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह केस गलत याचिका दायर कर भुगतान लेने के मामले में है। इसमें याची व गवाहों के नाम व पते फर्जी निकले थे।
वर्ष 2017 में उक्त फर्जीवाड़े की शिकायत व जांच के लिए पीआईएल दाखिल की गई थी। इसमें अदालत ने जांच के आदेश दिए थे। वहीं, प्रयागराज के कैंट थाने में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसे ही सीबीआई ने अपने यहां एफआईआर दर्ज करने का आधार बनाया है। जो केस दर्ज किया है, उसके मुताबिक संस्था में आरबी लाल की नियुक्ति, अनधिकृत कोर्स चलाए जाने, परिसर में यीशु दरबार आयोजित किए जाने संबंधी मुद्दों पर कई याचिकाएं दाखिल की गईं।
इनमें कोई पैरवी नहीं की गई और सभी खारिज हो गईं। जांच में पता चला कि सभी याचिकाएं समान थीं, सिर्फ याची व गवाह के नाम बदले हुए थे। वहीं, याची व गवाह के नाम व पते भी फर्जी निकले। पर, जांच में यह पता चला कि सभी याचिकाएं अधिवक्ता गुलाब चंद्र सिंह ने दाखिल की थीं। उसने पूछताछ में बताया कि ये याचिकाएं वकील बीएन शर्मा व वीके सविता के कहने पर दाखिल की गई थी। हालांकि जांच में पता चला कि इन दोनों की मौत हो चुकी है। उसने यह भी बयान दिया था कि याचिकाएं इन्हीं दोनों वकीलों के यहां टाईप की गई थीं, लेकिन यह तथ्य भी गलत पाया गया।
जब संस्था के कुलपति आरबी लाल और संस्था के दो अधिवक्ताओं जे नागर व अमित नेगी से पूछताछ की तो वे संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। जांच में पता चला कि इन याचिकाओं के लिए वकीलों को दी जाने वाली राशि का चेक वकील नागर को सौंपा जाता था। सीबीआई अब यह पता लगा रही है कि इन फर्जी याचिकाओं को दाखिल कराने के पीछे आरोपियों की क्या मंशा थी। याचिकाओं के एवज में हुए भुगतान में किस-किस की भागीदारी थी।