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16 घंटे पहले
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शुक्रवार, 18 मार्च को होलिका दहन होगा। इससे आठ दिन पहले यानी 10 मार्च से होलाष्टक शुरू हो जाएगा। होलाष्टक में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ काम नहीं किए जाते हैं। अगर आप ऐसा ही कोई शुभ करना चाहते हैं तो 10 मार्च से पहले कर लेना चाहिए। इन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा खासतौर पर करनी चाहिए।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के मुताबिक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से फाल्गुन पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। होलिका दहन के बाद होलाष्टक खत्म हो जाता है। इन आठ दिनों में शुभ कार्य वर्जित रहते हैं, लेकिन ये आठ दिन पूजा-पाठ और ध्यान के लिए शुभ माने जाते हैं।
होलाष्टक के बाद कब से शुरू हो सकेंगे मांगलिक कार्य
सोमवार, 14 मार्च को सूर्य मीन राशि में चला जाएगा। सूर्य के मीन राशि में जाने से मलमास शुरू हो जाएगा। सूर्य जब गुरु ग्रह की धनु या मीन राशि में रहता है तो मलमास माना जाता है। ज्योतिष की मान्यता है कि सूर्य जब गुरु ग्रह की राशि में रहता है तो सूर्यदेव देवगुरु बृहस्पति की सेवा में रहते हैं। सूर्य पंचदेवों में से एक हैं और इनकी पूजा हर एक शुभ काम में अनिवार्य रूप से की जाती है। सूर्य गुरु बृहस्पति की सेवा में रहते हैं तो वे मांगलिक कर्मों में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। इस वजह से मलमास में विवाह, गृह प्रवेश जैसे शुभ काम के मुहूर्त नहीं रहते हैं। सूर्य 14 मार्च से 14 अप्रैल तक मीन राशि में रहेगा। 14 अप्रैल को ये ग्रह मेष राशि में प्रवेश करेगा और फिर से मांगलिक कर्म की शुरुआत हो जाएगी।
होलाष्टक में करें मंत्र जाप और ध्यान
होलाष्टक के समय मौसम में न तो ज्यादा ठंड रहती है और न ही ज्यादा गर्मी रहती है। ये समय मौसम परिवर्तन का है। ठंड खत्म हो रही है और गर्मी आ रही है। ऐसे में अधिकतर लोगों का मन काम में नहीं लग पाता है। इस वजह से होलाष्टक के दिनों में ध्यान करने का सबसे ज्यादा फायदेमंद रहता है। ध्यान करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, नकारात्मक विचार खत्म होते हैं और काम में मन लगने की समस्या खत्म हो सकती है। इन दिनों में किए गए जाप और पूजा-पाठ से भक्त की मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
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