Covid-19 testing in India: भारत में 15 मई से 17 जून के बीच टेस्टिंग रेट 4.3 रहा है। कोरोना से प्रभावित अन्य देशों की तुलना में भारत का टेस्टिंग रेट बहुत कम है। इसके पीछे क्या वजह है?
सबसे सटीक टेस्ट का रिजल्ट आने में लग जाता है पूरा दिन
इन टेस्ट्स से भी चलता है इन्फेक्शन का पता
Coronavirus testing: भारत में कोरोना की टेस्टिंग के बारे में जानिए सबकुछ
Covid-19 testing in India: भारत में 15 मई से 17 जून के बीच टेस्टिंग रेट 4.3 रहा है। कोरोना से प्रभावित अन्य देशों की तुलना में भारत का टेस्टिंग रेट बहुत कम है। इसके पीछे क्या वजह है?
सबसे सटीक टेस्ट का रिजल्ट आने में लग जाता है पूरा दिन
पूरी दुनिया में कोरोना टेस्ट करने के लिए सबसे ज्यादा RT-PCR का यूज हो रहा है। इसका फुल फॉर्म Reverse transcription-polymerase chain reaction है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने RT-PCR को टेस्टिंग का ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’ बताया है। इसमें टेस्ट में DNA को ‘एम्प्लिफाई’ किया जाता है ताकि उसे एनालाइज किया जा सके। इसके बाद सैंपल को PCR मशीन में रखा जाता है जो हीटिंग और कूलिंग के अलग-अलग साइकल्स के जरिए टारगेट DNA की करोड़ों कॉपी बनाती है। फिर इसमें एक डाई मिलाई जाती है, अगर सैंपल पॉजिटिव है तो डाई चमकने लगती है। लैब के भीतर यह टेस्ट लगभग 100% सटीक है। हालांकि सैंपल कलेक्शन से लेकर रिजल्ट्स आने तक में 24 घंटे या उससे ज्यादा भी लग सकते हैं। PCR मशीनें चलाना खर्चीला है और सैंपल्स आमतौर पर एक बैच में टेस्ट किए जाते हैं।
इन टेस्ट्स से भी चलता है इन्फेक्शन का पता
टेस्टिंग को और बेहतर करने के लिए दुनियाभर के रिसर्चर्स काम कर रहे हैं। RT-PCR के अलावा इनका इस्तेमाल भी कोरोना डिटेक्ट करने में हो रहा है।
CT स्कैन: चीन में इसका खूब इस्तेमाल हुआ। कोविड-19 की वजह से होने वाली ‘लंग ऑपेसिटी’ का स्कैन में पता चल जाता है। वुहान में RT-PCR में पॉजिटिव मिले 97% मरीजों के CT स्कैन्स में निमोनिया के लक्षण दिखे। हालांकि कई और स्टडी कहती हैं कि CT स्कैन से बड़ी संख्या में पेशेंट्स का पता नहीं लगाया जा सकता।
LAMP: यह PCR के प्रिंसीपल पर ही काम करता है। दोनों की टारगेट के जेनेटिक मैटीरियल को एम्प्लिफाई करते हैं। PCR में जहां कूलिंग और हीटिंग के लिए खास इक्विपमेंट यूज होता है, वहीं LAMP की टेस्टिंग मशीनरी छोटी होती है। इससे सिर्फ एक घंटे में नतीजे आ जाते हैं और टेस्टिंग के लिए ट्रेन्ड टेक्नीशियंस की जरूरत भी नहीं है। हालांकि इस टेस्ट का ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ है।
ऐंटीबॉडी टेस्ट: इससे मिनटों में रिजल्ट्स आते हैं मगर वो भरोसेमंद नहीं। यह कोई डायग्नोस्टिक टेस्ट नहीं है मतलब आपको यह पता चलेगा कि पहले कभी आपको कोरोना हुआ था या नहीं।
ऐंटीजेन टेस्ट: इस टेस्ट में उन प्रोटीन्स को डिटेक्ट किया जाता है जो वायरल का हिस्सा होती हैं। नाक या गले से सैंपल लेकर ऐंटीजेन टेस्ट मिनटों में रिजल्ट दे सकता है मगर RT-PCR जितना सटीक नहीं है। हालांकि इस टेस्ट को अस्पतालों और ऑफिसेज में लोगों को स्क्रीन करने के लिए यूज कर सकते हैं। 15 जून को ICMR ने देशी की पहली ऐंटीजेन टेस्टिंग किट को मंजूरी दी थी।
जीन-एडिटिंग: कुछ रिसर्चर्स CRISPR नाम के एक जीन-एडिटिंग टूल का इस्तेमाल कर सैंपल्स में वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस का पता लगा रहे हैं। यह तरीका जीका के अलावा और भी वायरस के लिए पहले यूज हो चुका है। ऐसी किट करीब 450 रुपये में बनाई जा सकती है जो प्रेग्नेंसी किट की तरह काम करती है। छोटे लेवल की एक स्टडी में इसने सटीक नतीजे दिए मगर बड़े पैमाने पर यह तरीका यूज नहीं हुआ है।
टेस्टिंग में यहां भारत से हो रही चूक
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बाकी दुनिया के मुकाबले भारत बहुत पीछे
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