बजट 2021: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ।
– फोटो : amar ujala
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कोरोना महामारी का प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी काफी नकारात्मक असर पड़ा है। चालू वित्तीय वर्ष व आगामी वित्त वर्ष में प्रदेश को केंद्रीय करों में मिलने वाली हिस्सेदारी में करीब 63 हजार करोड़ रुपये कमी की नौबत आ गई है। इसी तरह राज्य के स्वयं के कर राजस्व में भी चालू वित्त वर्ष के अनुमान की अपेक्षा 30 से 35 प्रतिशत तक कमी के संकेत हैं।
इसके स्पष्ट संकेत राज्य सरकार के आगामी बजट में पुनरीक्षित अनुमान में सामने आने की उम्मीद है। ऐसे में प्रदेश के सामने चालू वित्त वर्ष के लिए प्रस्तावित योजनाओं व परियोजनाओं के लिए प्रावधान के हिसाब से आवंटन की चुनौती बढ़ गई है। आगामी वित्त वर्ष के लिए बजट में भी आर्थिक तंगहाली के स्पष्ट आसार नजर आ रहे हैं।
सरकार ने निवेश व रोजगार को प्रोत्साहन के लिए करीब डेढ़ दर्जन सेक्टोरल नीतियां बनाई हैं। बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट स्थापित हो रहे हैं। निवेशकों की वित्तीय सहूलियतों को लेकर किए वादों के लिए बजट प्रावधान करना है।
इसी तरह मेडिकल कालेजों की स्थापना, जल जीवन मिशन सहित केंद्रीय सहायता वाली योजनाओं व परियोजनाओं के लिए राज्यांश मद से बड़ा आवंटन करना पड़ता है। केंद्र की घोषित कई नई योजनाओं के साथ इस पर भार और बढ़ना ही है। ऐसे में वित्त वर्ष 2021-22 के चुनावी बजट के लिए संसाधनों की चुनौती बढ़ गई है।
कोरोना महामारी से तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे किसानों व बेरोजगार युवाओं को चुनावी वर्ष में सरकार से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं। विधायक एक वर्ष से विधायक निधि व कर्मचारी डीए का इंतजार कर रहे हैं।
सरकार पर चुनाव से पहले भारी भरकम बजट वाले ये खर्चे फिर शुरू करने हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था की बदहाली, कर्जभार बढ़ने के अनुमान के बीच चुनाव के लिहाज से सरकार किस तरह बजट तैयार करती है, इस पर निगाहें टिकी हैं।
कोरोना महामारी का प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर भी काफी नकारात्मक असर पड़ा है। चालू वित्तीय वर्ष व आगामी वित्त वर्ष में प्रदेश को केंद्रीय करों में मिलने वाली हिस्सेदारी में करीब 63 हजार करोड़ रुपये कमी की नौबत आ गई है। इसी तरह राज्य के स्वयं के कर राजस्व में भी चालू वित्त वर्ष के अनुमान की अपेक्षा 30 से 35 प्रतिशत तक कमी के संकेत हैं।
इसके स्पष्ट संकेत राज्य सरकार के आगामी बजट में पुनरीक्षित अनुमान में सामने आने की उम्मीद है। ऐसे में प्रदेश के सामने चालू वित्त वर्ष के लिए प्रस्तावित योजनाओं व परियोजनाओं के लिए प्रावधान के हिसाब से आवंटन की चुनौती बढ़ गई है। आगामी वित्त वर्ष के लिए बजट में भी आर्थिक तंगहाली के स्पष्ट आसार नजर आ रहे हैं।
चुनावी बजट के लिए संसाधनों की चुनौतियां बढ़ीं
सरकार ने निवेश व रोजगार को प्रोत्साहन के लिए करीब डेढ़ दर्जन सेक्टोरल नीतियां बनाई हैं। बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट स्थापित हो रहे हैं। निवेशकों की वित्तीय सहूलियतों को लेकर किए वादों के लिए बजट प्रावधान करना है।
इसी तरह मेडिकल कालेजों की स्थापना, जल जीवन मिशन सहित केंद्रीय सहायता वाली योजनाओं व परियोजनाओं के लिए राज्यांश मद से बड़ा आवंटन करना पड़ता है। केंद्र की घोषित कई नई योजनाओं के साथ इस पर भार और बढ़ना ही है। ऐसे में वित्त वर्ष 2021-22 के चुनावी बजट के लिए संसाधनों की चुनौती बढ़ गई है।
कई बड़े बजट वाले वादे अभी अधूरे
कोरोना महामारी से तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे किसानों व बेरोजगार युवाओं को चुनावी वर्ष में सरकार से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें हैं। विधायक एक वर्ष से विधायक निधि व कर्मचारी डीए का इंतजार कर रहे हैं।
सरकार पर चुनाव से पहले भारी भरकम बजट वाले ये खर्चे फिर शुरू करने हैं। ऐसे में अर्थव्यवस्था की बदहाली, कर्जभार बढ़ने के अनुमान के बीच चुनाव के लिहाज से सरकार किस तरह बजट तैयार करती है, इस पर निगाहें टिकी हैं।